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पिता का समर्पण

पिता का समर्पण

पिता सदा अपनी खुशियों का करते हैं तर्पण
परिवार के लिए करते रहते सर्वस्व समर्पण।

सुबह-सुबह टिफिन उठा ऑफिस हैं जाते
गरम-गरम खाने का सुख हैं उठा न पाते।

वे हैं परिवार के रथ को चलाने वाले सारथी
तूफानों से भी कभी ना घबराने वाले महारथी।

मुसीबत में परिवार के लिए बनते हैं चट्टान
उम्मीदों पर खरा उतरने हेतु लगाते जान।

चुनी कंटीली राह, सुकून भरी छाँव हमें दिया
देख हमारे खिले चेहरे, रब का किया शुक्रिया।

कभी कंधे पर बिठा दिखाया जीवन का खेल
कभी घोड़ा बनकर घुमाया कभी बन गए रेल।

कभी बने नारियल से कठोर कभी मोम से नरम
संवेदनाओं को छिपा दिखाते अपना रूप गरम ।

मेरी एक मुस्कान के लिए जीवन किया अर्पण
अनुभवों से जीवन का नित दिखाया दर्पण।

तालियों और गालियों की नहीं की फ़िक्र
अपनी चाहत का कभी नहीं किया जिक्र।

हमारे भविष्य के लिए, कभी बने कृपण
कभी ना जताएँ, पिता का है ऐसा समर्पण।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नोएडा, उत्तरप्रदेश

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13 Comments

Sudhanshu pabdey

06-Feb-2022 10:02 AM

Very beautiful 👌

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Zakirhusain Abbas Chougule

06-Feb-2022 01:09 AM

Bahut sundar

Reply

N.ksahu0007@writer

05-Feb-2022 11:39 PM

आला―तरीन पेशकश 😊👌👌👌

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Dr. Arpita Agrawal

06-Feb-2022 12:01 AM

शुक्रिया आदरणीय

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